भारतवर्ष त्यौहारों का देश है। यहां वर्ष के प्रत्येक महीने की तिथि के अनुसार कई प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं। भारत में त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक कहानी होती है। हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं और उनके विविध रीति-रिवाज हैं। वह अपने रीति-रिवाजों को समय-समय पर विशेष रूप से प्रस्तुत करते रहते हैं, यूं तो हर धर्म में कोई न कोई त्योहार मनाने की परंपरा है। जिन्हें हम वर्षों से मनाते आ रहे हैं क्योंकि ये त्यौहार हमारे देश की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं के प्रतीक हैं। उनमे से एक पर्व साजो महोत्सव (Sajo festival 2024) है, जो इस बार 14 जनवरी (when is sajo festival celebrated) को मनाया जा रहा है। आइये जानते है इसके बारे में-
Sajo festival :महोत्सव मनाने का कारण(हिमाचल प्रदेश)
Himachal Pradesh के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक, साज़ो एक धार्मिक त्योहार है, जिसे स्थानीय देवताओं के स्वर्ग की ओर जाने के प्रतीक के रूप में बड़े उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है। किन्नौर जिले (Sajo festival in Himachal Pradesh) के विभिन्न क्षेत्रों में माघ माह में जाने वाला साजो पर्व बड़ी ही आस्था के साथ मनाया जाता है। Sajo festival के बाद किन्नौर में नववर्ष का प्रारंभ होता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस त्योहार के दौरान देवता कुछ समय के लिए स्वर्ग चले जाते हैं। और लगभग 15 दिनों के बाद प्रथ्वीलोक वापस आते है, जिसे किन्नौर निवासी एक धार्मिक उत्साह में रूप में मनाते है।
Sajo festival : उत्सव की विशेषताएं
किन्नौर जिले के कल्पा गांव के मंदिर में विष्णु नारायण और देवी नागिन को उनके मंदिर परिसर से सटे सेरिग (रेत) में ढोल-नगाड़ों के साथ लाया जाता है। जहां गांव के सभी ग्रामीण किन्नौरी पारंपरिक वेशभूषा में एकत्र होते है और देवी-देवताओं के पौराणिक गीत गाते हुए नृत्य करते है। पूर्वज और बुजुर्ग लंबे समय से इस त्योहार को मनाते आ रहे हैं। यह पर्व जिले में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि सत्ययुग में कल्प में देवी चंडिका का शासन था और इस पवित्र स्थान पर राक्षस भी रहते थे। दोनों के बीच अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए लड़ाई होती रहती थी और दोनों में से किसी की हार नहीं होती थी। अंततः देवी की सहायता के लिए टेक (शिव का रूप) सेरिग में प्रकट हुए जो आज भी धारंक (पत्थर की शिला) सेरिग क्षेत्र में मौजूद हैं। दोनों ने मिलकर राक्षसों का सामना किया था। आज भी लोग उसी परंपरा का पालन करते हुए देवी टेक से मिलने सेरिग आते हैं।
- साज़ो महोत्सव (Sajo festival In Hindi) पर मंदिर के पुजारियों की भी पूजा की जाती है क्योंकि उन्हें देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता है। और उन्हें उपहार स्वरूप अनाज और अन्य खाद्य पदार्थ भी दिए जाते हैं।
- इस त्योहार के दिन देवताओं को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में चावल, दाल, सब्जियां और हलवा भी सम्मिलित होता है।
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