यह आज का LUCKNOW है, जो जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा आदि के संबंधों से पूरी तरह मुक्त होकर भविष्य की ओर तेजी से बढ़ रहा है। आज LUCKNOW में क्या नही है और जो नही है वो आने वाले समय में हो जायेगा रेसकोर्स (Racecourse), स्टेडियम (Stadium), रिवरफ्रंट (Riverfront), पार्क (Park), वाटरपार्क (Water Park), ऑडिटोरियम (Auditorium), सभास्थल (Meeting Place), साइंससेंटर (Science Centre), कोलसिटी (Coal City), अत्याधुनिक हॉस्पिटल (Modern Hospital), मेट्रो (Metro), फ्लाईओवर (Flyover), ऊँची-ऊँची इमारते (High-Rise Buildings), फाइव स्टार होटल (Five Star Hotel), लजीज रेस्टोरेंट (Delicious Restaurant), नाईटक्लब (Night Club), इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मुख्यालय (Headquarters of Electronic Media), विधानसभा भवन (Assembly Building), एयरपोर्ट (Airport), एक्सप्रेस-वे (Expressway), रिंग-रोड (Ring Road), विशाल चौराहे (Huge Intersection), भव्य रेलवे-स्टेशन (Grand Railway Station), चिड़ियाघर (Zoo), संग्रहालय (Museum), स्मारक (Monument), विश्वविद्यालय (University), मेडिकल कॉलेज (Medical College), हाईकोर्ट (High Court), नये-पुराने बाजार (New And Old Markets), हर वह व्यवस्था है या आती जा रही है जिससे एक शहर आधुनिक बनता है लेकिन यह सब हमेशा से ऐसा नही था जो विस्तार और विकास आज LUCKNOW में है वह उत्तर प्रदेश के नोएडा और काफी हद तक कानपुर के अलावा किसी और शहर में नही देखा जा सकता इसका कारण क्या है और जब भी आप वजह जानना चाहते है तो इतिहास में पीछे लौटना ही पड़ता है, आइये इतिहास के पन्ने पलटते हैं और लखनऊ के बारे में जानते हैं-
Historical Evolution of Lucknow: From Ancient Times to Modern Era
भारत (INDIA) एक ऐसा देश है जहाँ प्राचीन काल से ही इतिहास को पौराणिक कथाओं के रूप में संरक्षित किया गया है जो हमें हजारों साल पहले हुई घटनाओं के बारे में बताता है। भले ही इनकी प्रमाणिकता को लेकर कई विवाद हैं, लेकिन किसी जगह के नाम का बदला जाना एक ऐसी घटना है जिसे इतिहास में हमेशा दर्ज किया जाता है LUCKNOW का नाम LUCKNOW कैसे पड़ा यह समझने के लिए हमें पौराणिक घटनाओं का जिक्र करना होगा –
अयोध्या (Ayodhya) कौशल प्रदेश की राजधानी थी जहाँ रामराज्य की स्थापना हो चुकी थी यहां से 130 किमी दूर आदिगंगा नामक गोमती नदी (Gomti River) के तट पर ऋषि-मुनियों का आश्रम हुआ करता था। उस समय यह स्थान छोटी काशी के नाम से तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध था। अवध नरेश श्री राम (Sri Ram) ने यह भूमि अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित की और इसे एक नया नाम लक्ष्मणपुर दिया।
एक अन्य मत के अनुसार राजा लाखन की पत्नी के नाम पर इसका नाम लखनावती रखा गया था।
18वीं शताब्दी में इसे नवाबों ने अवध की राजधानी के रूप में चुना था, तब इसका नाम बदलकर लखनऊ कर दिया गया था।
लक्ष्मणटीला, कौंडिन्य ऋषि आश्रम, कुड़िया घाट आज भी पौराणिक स्थलों के रूप में संरक्षित हैं। लक्ष्मणटीला मुग़ल काल से पहले शहर का केंद्र होता था टीले के ऊपर एक पौराणिक मंदिर था जिसे सन 1700 के आस-पास जब औरंगजेब (Aurangzeb) ने हिन्दुओं पर अतिरिक्त कर लगाया तब अवध की देख-भाल के लिये नियुक्त किये गए सुल्तान अलीशाह कुली खां (Sultan Alishah Quli Khan) द्वारा मंदिर के स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया जो आज टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है इस टीले पर शाह पीर मोहम्मद की मृत्यु हुई थी जिसके बाद इसे शाहपीर मोहम्मद (Shahpeer Mohammad) का टीला कहा जाने लगा जिसकी लम्बाई 200 मी और ऊँचाई लगभग 120 मी है
अवध की वह भूमि जहाँ पर पौराणिक काल में प्रथम सूर्यवंशी राजा मनु, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, भगीरथ, सम्राट रघु जिसके बाद सुर्यवंशों को रघुवंश कहा जाने लगा राजा दशरथ, श्री राम उनके पुत्र कुश जैसे सूर्यवंशी राजाओं का अधिपत्य रहा उसके बाद प्राचीन भारत में नन्द वंश, मौर्य वंश में चन्द्रगुप्त और उसके पोते चक्रवर्ती सम्राट अशोक, गुप्त वंश में महाराजा विक्रमादित्य मध्य कालीन तक आते-आते तुगलक, लोधी और अंत में मुगलों एवं अंग्रेजों के अधीन हो चुका था यहाँ की भाषा में संस्कृत के बाद हिंदी से उर्दू और फिर अंग्रेजी के शब्दों का भी समावेश होता चला गया मुग़ल शासकों ने जब दिल्ली को अपनी सल्तनत की राजधानी बनाया तो सुदूर प्रान्तों पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु वहां नवाबों की नियुक्ति की गई थी
मुग़ल काल में अवध प्रान्त की राजधानी फ़ैजाबाद थी अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद चौथे नवाब आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ को अवध की राजधानी के रूप में चुना उस काल में गोमती नदी किनारे बसा यह क्षेत्र मंदिर, आश्रम एवं कृषि योग्य भूमि से शोभायमान था एक तीर्थ स्थल के रूप में यहाँ काफी लोगो का अवागमन होता रहता था इस लिये नई राजधानी के रूप में यह जगह पूरी तरह से उपयुक्त था इस समय दिल्ली का बादशाह शाहआलम द्धितीय था जिसके हाथों से धीरे-घीरे मुग़ल साम्राज्य की बाग़ड़ोर सरकते हुये अंग्रेजों के हाथों जा रही थी इसलिये नवाबों पर अंग्रेजों का अधिक अधिकार था
1902 में उत्तर पश्चिम प्रांत का नाम बदलकर संयुक्त प्रांत आगरा एवं अवध कर दिया गया। आम बोलचाल में इसे संयुक्त प्रांत या यूपी कहा जाता था। 1920 में राज्य की राजधानी को इलाहाबाद से बदलकर लखनऊ कर दिया गया। राज्य का उच्च न्यायालय इलाहाबाद रहा तथा उच्च न्यायालय की एक खण्डपीठ लखनऊ में स्थापित की गयी। आज़ादी के बाद 12 जनवरी 1950 को इस क्षेत्र का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बन गयी। इस प्रकार यह अपने पूर्व संक्षिप्त नाम यूपी से जुड़ा रहा। गोविंद वल्लभ पंत इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश और भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
Lucknow: प्रसिद्ध स्थल
Lucknow , उत्तर प्रदेश की राजधानी, एक प्राचीन शहर जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत का सजीव प्रतीक है। यह शहर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, और यहाँ के प्रमुख स्थलों में बड़ा इमामबाड़ा (Bada Imambara), छोटा इमामबाड़ा (Chhota Imambara), ब्रिटिश रेजीडेंसी (British Residency), रूमी दरवाज़ा (Rumi Darwaza), मोती महल (Moti Mahal), दिलकुशा कोठी (Dilkusha Kothi), हुसैनाबाद घंटाघर (Hussainabad Clock Tower), आम्रपाली वॉटर पार्क (Amrapali Water Park), अमीनाबाद बाज़ार (Aminabad Bazaar), हजरतगंज बाजार (Hazratganj Bazaar), चौक (Chowk), इंदिरा गांधी तारामंडल (Indira Gandhi Planetarium), अम्बेडकर पार्क (Ambedkar Park), नवाब वाहिद अली शाह प्राणी उद्यान (Nawab Wahid Ali Shah Zoological Park), राज्य संग्रहालय (State Museum), राम मनोहर लोहिया पार्क (Ram Manohar Lohia Park), जनेश्वर मिश्र पार्क (Janeshwar Mishra Park), चंद्रिका देवी मंदिर (Chandrika Devi Temple), फन रिपब्लिक मॉल (Fun Republic Mall), जामा मस्जिद (Jama Masjid), कॉन्स्टेंटिया हाउस (Constantia House), सतखंडा (Satkhanda), चारबाग रेलवे स्टेशन (Charbagh Railway Station), छतर मंजिल (Chhatar Manzil), पिक्चर गैलरी (Picture Gallery) इत्यादि शामिल हैं।
Lucknow Bada Imambara: बड़ा इमामबाड़ा
बड़ा इमामबाड़ा (Lucknow), जिसे आसफ़ी इमामबाड़ा (Asafi Imambara) के नाम से भी जाना जाता है, जिसका निर्माण 1784 में अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने करवाया था। यह इमामबाड़ा निज़ामत इमामबाड़ा के बाद दूसरा सबसे बड़ा इमामबाड़ा है।
आसफ-उद-दौला के कार्यकाल में एक भयंकर अकाल पड़ा, लोग बेरोजगार हो गये और आजीविका के लिये तरसने लगे, तब उन्हें राहत देने के लिए बड़ा इमामबाड़ा और रूबी दरवाजा के निर्माण की नींव रखी गई। इस निर्माण कार्य से 22000 लोगो को रोजगार मिला इमामबाड़ा का निर्माण 1784 में पूरा हुआ था। जिसकी लम्बाई 50 मीटर और 15 मीटर ऊंचा है, जिसके निर्माण की अनुमानित लागत 5-10 लाख रुपये के बीच आई थी। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद भी, नवाब इसकी सजावट पर सालाना चार से पांच लाख रुपये खर्च करते थे।
इसे मरहूम हुसैन अली की शहादत की याद में बनाया गया है। इमारत की छत तक जाने के लिए 84 सीढ़ियां हैं जो एक ऐसे रास्ते से होकर जाती हैं जो किसी भी अनजान व्यक्ति को भ्रम में डाल दें जिससे अनजान व्यक्ति इसमें भटक जाए और बाहर न निकल सके. इसीलिए इसे भूलभुलैया कहा जाता है। इस इमारत की कल्पना और कारीगरी अद्भुत है। इसमें ऐसी खिड़कियां बनाई गई हैं जहां मुख्य दरवाजे से प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति पर नजर रखी जा सके जबकि खिड़की में बैठा व्यक्ति दिखाई न देता था। आसफ-उद-दौला ने बड़ा इमामबाड़ा के ठीक बाहर 18 मीटर (59 फीट) ऊंचा रूमी दरवाजा भी बनवाया था। भव्य सजावट से सुसज्जित यह द्वार इमामबाड़ा का पश्चिममुखी प्रवेश द्वार था।
Lucknow British Residency: ब्रिटिश रेजीडेंसी
1857 के प्रथम व्यापक सैनिक विद्रोह का सबसे बड़ा साक्ष्य रेजीडेंसी जो लखनऊ में ही स्थित है
रेजीडेंसी , जिसे ब्रिटिश रेजीडेंसी और रेजीडेंसी कॉम्प्लेक्स भी कहा जाता है, आसफुद्दौला के शासनकाल में ब्रिटिश रेजीडेंसी का निर्माण शुरू हुआ जो नवाब सआदत अली खां के शासन में बन कर तैयार हुई। रेजिडेंसी के नाम से स्पष्ट है कि यह एक निवास स्थान है, जो ब्रिटिश रेजिडेंट जनरल का निवास है, जो नवाबों के दरबार में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व करता था। 1 जुलाई 1857 और 17 नवंबर 1857 के बीच, रेजीडेंसी लखनऊ की घेराबंदी के अधीन थी, जो 1857 के भारतीय विद्रोह का हिस्सा था। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने लखनऊ पर पुनः कब्ज़ा कर लिया ।
Lucknow Hussainabad clock tower: हुसैनाबाद घंटाघर
रूमी दरवाजा के पास, आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉर्ज कूपर के आगमन पर, 1881 में हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा 219 फीट ऊंचा घंटाघर बनाया गया था, जो भारत का सबसे ऊंचा खड़ा टॉवर है। यह लंदन के बिग बेन क्लॉक टॉवर की एक शानदार प्रतिकृति है। पास में ही एक चित्र गैलरी स्थित है जिसमें लखनऊ के सभी नवाबों की तस्वीरों का संग्रह है।
Lucknow Satkhanda: सतखंडा
दिल्ली के क़ुतुब मीनार से प्रेरणा लेकर मोहम्मद अली शाह ने 1837 में सात मंजिला ऊचें वाच टावर का निर्माण शुरू करवाया लेकिन उनकी मृत्यु के कारण मात्र चार मंजिलों के बाद इसका काम रोक दिया गया चांदनी रात में चन्द्रमा को देखते हुए आराम गाह के तौर पर इस सतखंडे का निर्माण शुरू कराया जा रहा था
Lucknow JAMA Masjid: जामा मस्जिद
जामा मस्जिद, लखनऊ के हुसैनाबाद क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1839 ई. में अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने आकार में दिल्ली की जामा मस्जिद को पार करने के इरादे से शुरू किया था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मस्जिद को उनकी पत्नी रानी मलिका जहाँ साहिबा ने पूरा कराया।
Lucknow Aminabad Market: अमीनाबाद बाज़ार
अमीना हमज़ा बाज़ार चौक, नाथन और हज़रतगंज के साथ लखनऊ शहर के सबसे पुराने बाज़ार केंद्रों में से एक है। इसकी तुलना अक्सर दिल्ली के चांदनी चौक से की जाती है। यहाँ पर चादरें, बिस्तर कवर, कालीन, आभूषण, फैशन परिधान, फैंसी ड्रेस, चिकन कुर्ता , चिकन साड़ी और अन्य महिलाओं के परिधान, चिकन मेन्सवियर, जूते और ऐसे अन्य परिधान की दुकाने हैं। अधिकांश उत्पाद स्थानीय स्तर पर उत्पादित होते हैं। गुरुवार का फुटपाथ बाजार एक विशेष आकर्षण है। लखनऊ में चिकन खाया भी जाता है और पहना भी जाता है।
Lucknow Dilkusha Kothi: दिलकुशा कोठी
दिलकुशा कोठी का निर्माण 1800 के आसपास अवध के शासक नवाब सआदत अली खान के मित्र , ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर गोर ओउसली द्वारा किया गया था। इस कोठी को बारोक शैली में बनाया गया था
Lucknow Indira Gandhi Planetarium
इंदिरा गांधी तारामंडल लखनऊ के सूरजकुंड पार्क में गोमती नदी के तट पर स्थित एक संग्रहालय है। इसका नाम प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है। इंदिरा गांधी तारामंडल का उद्घाटन 2003 में मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा किया गया था। इसका मुख्य आकर्षण विज्ञान और खगोल विज्ञान शो, 3डी मॉडल और प्रदर्शनियां हैं। इंदिरा गांधी तारामंडल के चारों ओर पांच वलय के साथ शनि के आकार में डिजाइन और मॉडलिंग की गई यह इमारत सौर मंडल को दर्शाती आकर्षक वास्तुकला का दावा करती है।
Lucknow Constantia House: कॉन्स्टेंटिया हाउस
कॉन्स्टेंटिया हाउस, ला मार्टिनियर बॉयज़ कॉलेज, लखनऊ में स्थित एक खूबसूरत इमारत है। इसे भारत में सबसे बड़ा यूरोपीय अंत्येष्टि स्मारक माना जाता है, इसे 1785 में एक ब्रिटिश सेना अधिकारी क्लाउड मार्टिन द्वारा बनाया गया था।
इमारत के अंदरूनी हिस्सों को फ्रांसीसी कालीनों, प्लास्टर ऑफ पेरिस के विवरणों, दर्पणों और चित्रों से सजाया गया है जो बीते युग की भव्यता की याद दिलाते हैं।
Lucknow: चर्चित व्यक्ति
बॉलीवुड की कई फिल्मों का चित्रांकन या तो लखनऊ में किया गया है या तो इनका पटकथा इसके ऊपर आधारित है जैसे- Umrao Jaan, Junoon, Gaman, Shatranj Ke Khilari, Dabangg, Daawat-e- Ishq, Tanu weds Manu, Ishqjade, Bullett Raja, Youngistaan, Jolly LL.B. 2, Gadar, Raid आदि
बॉलीवुड की हिंदी भाषा में उर्दू की मिठास घोलना का काम यहाँ के शायरों ने किया है, जिसमे बहुचर्चित नाम है गीतकार जावेद अख्तर जी का इसके अलावा कई ऐसे नाम है जिन्होंने बॉलीवुड को अपनी प्रतिभा से सवारा है जैसे- सुमोना चक्रवर्ती (Sumona Chakraborty), अनूप जलोटा (Anoop Jalota), तलत महमूद (Talat Mehmood), अली फ़जल (Ali Fazal) आदि
राजनेता में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Prime Minister Atal Bihari Vajpayee), राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा (President Shankar Dayal Sharma), उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा का संबंध भी लखनऊ से बहुत गहरा था